Sunday, May 2, 2010

सानिया से शादी शोएब की ख़ुशनसीबी..

sania33_288आपने ईद के चांद के बारे में पाकिस्तान से आने वाली ख़बरें सुनी और पढ़ी होंगी, जिनमें झगड़ा इस बात पर होता है कि चांद नज़र आ गया है या नहीं। जब कुछ लोग कहते हैं कि चांद नहीं, इस झगड़े का नतीजा यह निकलता है कि एक ही मुल्क और एक ही शहर में दो और कभी-कभी तीन ईदें भी हो जाती है और त्योहार का मजा किरकिरा हो जाता है। ऐसा ही एक झगड़ा पाकिस्तान की सिक्ख बिरादरी में उठ खड़ा हुआ है।

30 मार्च को गुरुद्वारा पंजा साहब में पाकिस्तान, अमेरिका, हिंदुस्तान और कुछ दूसरे मुल्कों से आए हुए सिक्खों की एक मीटिंग हुई, जिसमें यह कहा गया कि सिक्खों के पुराने मज़हबी कैलेंडर ‘नानक शाही’ में किसी भी क़िस्म की तब्दीली करने से पहले दुनिया भर के सिक्खों के प्रतिनिधि बुलाए जाएं, जब वे किसी बदलाव पर राजी हो जाएं, तब ही इसका एलान किया जाए।

पाकिस्तान में 25 हजार से ज्यादा सिक्ख रहते हैं, जिनकी बहुतायत लाहौर हसन अब्दाल, इस्लामाबाद, स्वात, पेशावर और ननकाना साहब में रहती है। इनके मामलात की देखभाल के लिए 11 लोगों की एक कमेटी बनी हुई है, जो ‘पाकिस्तानी सिक्ख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी कहलाती है।

इस कमेटी के सरदार शाम सिंह हैं, उनका और कमेटी के दूसरे मेंबर रमेश सिंह और डॉक्टर सुरन सिंह के साथ ही अमेरिकन सिक्ख काउंसिल के डॉक्टर प्रीतलाल सिंह का भी यही कहना है कि हम पुराने नानक शाही कैलेंडर में किसी भी तरह का बदलाव बर्दाश्त नहीं करेंगे और अपने सारे त्योहार पुराने कैलेंडर के हिसाब से ही मनाएंगे। यह झगड़ा कम होने की बजाय और बढ़ता ही नज़र आ रहा है।

अगर यह झगड़ा इसी तरह बढ़ता रहा, तो फिर सिक्ख भी अपने त्योहार एक दिन की बजाय अलग-अलग मनाएंगे और ईद का चांद नज़र आने या न आने पर हमारे यहां जिस तरह अलग-अलग ईदें होती हैं, वैसा ही मामला हिंदुस्तानी और पाकिस्तानी सिक्खों के बीच भी खड़ा हो जाएगा।

झगड़े की बातें एक तरफ़ रखते हुए आइए, एक ऐसे कॉलेज को याद करें, जो इस महीने 128 बरस का हो गया और जिससे इस इलाक़े में रहने वाले पुराने लोगों की बहुत सी यादें जुड़ी हुई हैं। यह बहावलपुर का क़िस्सा है, जहां 1882 में अपर ईजार्टन स्कूल क़ायम हुआ, जो सिर्फ़चार बरस के बाद कॉलेज बना दिया गया और उसका बहावलपुर के नवाब सर सादिक़ मोहम्मद ख़ान अब्बासी और पंजाब के उस व़क्त के गर्वनर सर रॉबर्ट ईज़र्टन के नाम को मिलाकर ‘सादिक़ ईजार्टन कॉलेज’ रख दिया गया। इस कॉलेज के पहले प्रिंसीपल बाबू प्रसन्न कुमार बोस बनाए गए, जो इससे पहले ढाका के जगन्नाथ कॉलेज में प्रिंसीपल थे।

इस कॉलेज के शुरू में टीचरों में मौलवी दीन मोहम्मद, राम रतन जी और मौलाना ज़मीयत अली शामिल थे उस व़क्त सिर्फ़ सात लड़कों को कॉलेज में दाख़िला मिला था और अब 128 बरस बाद इसमें चार हज़ार छात्र पढ़ते हैं और उन्हें पढ़ाने वालों की तादाद 150 है। सादिक ईजार्टन कॉलेज के कुछ पुराने विद्यार्थी इस व़क्त हिंदुस्तान में भी बिखरे हुए होंगे, क्योंकि बंटवारे के व़क्त यह कॉलेज 61 बरस का हो चुका था और यक़ीनन यहां के बहुत से विद्यार्थी हिंदुस्तान गए होंगे।

मुझे नहीं मालूम कि कॉलेज के इन पुराने विद्यार्थियों में से कोई तीन दिन के इस जश्न में शिरकत के लिए आ रहा है या नहीं, लेकिन इसके पुराने विद्यार्थी जहां भी होंगे, उन्हें अपने कॉलेज की सवासदी का जश्न मुबारक हो। मुबारकवादियों और फूलों से सानिया मिर्ज़ा और शोएब मलिक का हर जगह स्वागत हुआ। जब वो हिंदुस्तान से आकर पाकिस्तान के कुछ शहरों में गए। कुछ लोगों का कहना है कि यह शोएब मलिक की ख़ुशनसीबी है कि उसकी शादी सानिया मिर्ज़ा से हुई।

अगर वो किसी पाकिस्तानी लड़की से शादी करते, तो अख़बारों में एक कॉलम की ख़बर लग जाती और उसके बाद कोई पूछता भी नहीं कि शादी किससे हुई। यहां पाकिस्तान में इस शादी पर करोड़ों का सट्टा हुआ और अब शायद इस बात पर सट्टा लग जाए कि इनकी शादी कब तक चलती है, लेकिन इस तरह की बात करना नए-नवेले जोड़े को यक़ीनन पसंद नहीं आएगा। सानिया अगर इस बात पर नाराज़ है, तो हमें इनसे कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए, एक ज्योतिष ने भविष्यवाणी की है कि इन दोनों के यहां चार बच्चे होंगे।

सुना है कि शोएब मलिक सानिया मिर्ज़ा को मिरी ले जाने का इरादा रखते हैं। मिरी हमारे यहां का ठंडा और पहाड़ी शहर है, जहां गर्मियों के दिनों में लोग सैर-तफ़रीह को जाते हैं। यूं समझें कि हमारे यहां का शिमला है। शहर के हंगामों से दूर मिरी में उपमहाद्वीप पर अंग्रेजी राज की यादगार के रूप में तीन चर्च मौजूद हैं। अंग्रेजों ने सिक्खों को शिकस्त देने के बाद पंजाब और आसपास के इलाकों, यानी हज़ारा और कश्मीर पर कब्जा कर लिया, जिसके बाद इस इलाक़े के सबसे ऊंचे पहाड़ पर मिरी हिल स्टेशन की बुनियाद रखी।

उन्होंने शहर के बीच में होली ट्रिनिटी चर्च बनवाया था कि शहर को किसी यूरोपी शहर की शक्लोसूरत दी जा सके। अंग्रेजों की आमद से पहले यह इलाक़ा स्थानीय ईसाई क़बीले की मिल्कियत(स्वामित्व) में था और उसका नाम मसयारी था। इसके अलावा भी मिरी से जुड़ी हुई बहुत सी दास्तानें हैं। बहुत से इतिहासकारों का दावा है कि हज़रत मरियम (मदर मैरी) का कज़ार पिंडी पाइंट पर मौजूद है और इसी वज़ह से अंग्रेजों ने इस जगह को अपना केंद्र बनाया।

जबकि इन दावों की सच्चई को परखा नहीं जा सकता, क्योंकि इनसे जुड़े हुए ऐतिहासिक अधिकार उपलब्ध नहीं हैं, तो भी यह बात तो ज़रूर साफ़ हो जाती है कि मिरी ईसाइयों या अंग्रेजों ने आबाद किया था। मिरी के माल रोड पर ट्रिनिटी चर्च की तामीर 1850 में शुरू हुई थी और 1857 में यह मुकम्मिल हो गई थी और वहां पहली बार मज़हबी रस्में अदा की गई थीं। 150 बरस गुज़र जाने के बावजूद होली ट्रिनिटी चर्च आज भी बहुत अच्छी हालत में है।

हिंदुस्तान में भी होंगे छात्र पाकिस्तान के बहावलपुर में क़रीब 128 साल पहले 3 शिक्षकों और 7 छात्रों के साथ क़ायम हुए अपर ईजार्टन स्कूल में इस व़क्त 4000 छात्र पढ़ते हैं, और उन्हें पढ़ाने वाले शिक्षकों की संख्या है 150।

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