Wednesday, June 30, 2010

कल नक्सली हमला, आज से बंद का ऐलान

छत्तीसगढ़ में 26 जवानों की जान लेने के बाद नक्सलियों ने बुधवार से पांच राज्यों में बंद का ऐलान किया है। बिहार, झारखंड, पं. बंगाल, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा को पूरी तरह बंद रखने का फैसला लिया गया है। नक्सलियों के इस ऐलान के बाद केंद्र से लेकर राज्य सरकारें तक सतर्क हो गई हैं। रेलवे ने भी खुद को हाई अलर्ट रखा हुआ है। कई ट्रेनों को रद्द करने के साथ स्टेशनों और ट्रेनों की सुरक्षा बढ़ा दी गई है। नक्सल बंद के दौरान कोई भी ट्रेन ६५ किलोमीटर से अधिक गति से नहीं दौड़ेगी।

सीआरपीएफ के 26 जवान शहीद

छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले में मंगलवार को नक्सलियों ने एक बार फिर घात लगाकर हमला किया, जिसमें सीआरपीएफ के 26 जवान शहीद हो गए। हमले में 12 जवान गंभीर रूप से घायल हुए हैं। नारायणपुर से करीब 32 किमी दूर सीआरपीएफ के धौड़ाई कैंप से मंगलवार सुबह लगभग 70 जवानों की टीम रोड ओपनिंग के लिए निकली थी। टीम के साथ जिला पुलिस और एसपीओ के जवान भी थे।

जवान काम खत्म करने के बाद दोपहर करीब डेढ़ बजे पैदल लौट रहे थे। कैंप से लगभग साढ़े तीन किमी दूर महिमागावाड़ी में 500 से अधिक नक्सली घात लगाकर बैठे थे। जवानों के नजदीक आते ही एके-47 जैसे हथियारों से लैस नक्सलियों ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। ज्यादातर मौतें नक्सलियों की तरफ से हुई पहली फायरिंग में ही हुईं। सीआरपीएफ के महानिदेशक विश्वरंजन ने 26 जवानों के शहीद होने की पुष्टि की।

सीआरपीएफ और जिला पुलिस के जवानों ने नक्सलियों का डटकर मुकाबला किया। सीआरपीएफ के आईजी आरके दुआ ने बताया कि मुठभेड़ करीब ढाई घंटे तक चली। इलाके में संचार सुविधाएं ठप होने से प्रशासन को हादसे की सूचना देरी से मिली।

घायल जवानों को लाने के लिए वायुसेना का हेलिकॉप्टर भेजा गया, लेकिन कुछ समस्याओं की वजह से वह घटनास्थल के पास लैंड नहीं कर पाया। घायलों को सड़क के रास्ते जगदलपुर के अस्पताल लाया गया।
हमले के मद्देनजर मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने अपने निवास पर आला अफसरों की आपात बैठक बुलाई। उन्होंने गृहमंत्री पी. चिदंबरम को भी घटना की जानकारी दी।

तीन महीने में तीसरा बड़ा हमला

बीते तीन महीनों में नक्सलियों का यह छत्तीसगढ़ में तीसरा बड़ा हमला है। छह अप्रैल को दंतेवाड़ा में सीआरपीएफ के जवानों को घेर कर हमला किया था, जिसमें 76 जवान शहीद हो गए थे। वहीं दूसरी घटना में सुकमा के पास एक यात्री बस को बारूदी सुरंग से उड़ा दिया था, जिसमें 31 लोगों की मौत हो गई थी। मृतको में 15 एसपीओ और 16 आम लोग शामिल थे।





Tuesday, June 29, 2010

कश्मीर में हालात बेकाबू, मुख्यमंत्री ने सेना की मदद मांगी

जम्‍मू कश्‍मीर के हालात एकाएक काबू के बाहर हो गए हैं। मुख्‍यमंत्री उमर अब्‍दुल्‍ला ने आज राज्‍य में कानून-व्‍यवस्‍था की बिगड़ती स्थिति को देखते हुए हालात पर काबू पाने के लिए केंद्र से सेना की मदद मांगी है। हालांकि अभी इसपर कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है लेकिन राज्‍य की स्थिति को देखते हुए सेना को अलर्ट रहने को कह दिया गया है। यदि आने वाले समय में स्थिति नियंत्रण के बाहर हुई तो जम्‍मू-कश्‍मीर के उपद्रवगस्‍त क्षेत्रों को सेना के हवाले किया जा सकता है।

इसके साथ ही मुख्‍यमंत्री ने इस मामले में एक उच्‍च स्‍तरीय टीम का भी गठन किया है। यह टीम घाटी के हिंसा प्रभावित राज्‍यों में जाएगी और वहां के हालात का जायजा लेगी। यह टीम हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में शांति बहाली के लिए स्‍थानीय प्रशासन की मदद करेगी। इस टीम में लोक स्‍वास्‍थ्‍य यांत्रिकी मंत्री ताज मोहिरुद्दीन, कृषि मंत्री गुलाम हसन मीर, मुख्‍यमंत्री के सलाहकार मुबारक गुल तथा सड़क एवं भवन निर्माण राज्‍य मंत्री जाविद अहमद डार शामिल हैं।

अनंतनाग में आज हुई हिंसा की ताजा घटनाओं 2 लोग मारे गए और 3 गंभीर रूप से घायल हो गए। बीते दो हफ्ते के दौरान घाटी मेंहिंसा की घटनाओं में मारे जाने वाले लोगों की संख्‍या 10 तक पहुंच गई है। राज्‍य की उमर अब्‍दुल्‍ला सरकार पूरी तरह दबाव में आ गई है और उसने इस सारी स्थिति के लिए केंद्र पर आरोप मढ़ा है।

उधर पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने कहा है कि राज्‍य सरकार पूरी तरह विफल हो चुकी है। उन्‍होंने कहा है‍ कि राज्‍य सरकार स्थिति पर काबू पाने में पूरी तरह विफल रही है और हालात उसके काबू से बाहर हो चुके हैं। घाटी में सेना की तैनाती का विरोध करते हुए महबूबा ने कहा है कि सेना सभी समस्‍याओं का हल नहीं है।


कश्‍मीर में सोमवार को दो तथा रविवार को तीन लोग सुरक्षा बलों की फायरिंग में मारे जा चुके हैं। मंगलवार को भी घाटी के कई स्‍थानों पर प्रदर्शनकारियों एवं सुरक्षा बलों के बीच झड़प हुई है जिसमें कई लोग घायल हुए हैं। प्रदर्शनकारियों ने पुलिस की कई गाडि़यों को आग के हवाले कर दिया।

स्वाइन फ्लू का फिर से आतंक, 7 दिन में 17 मौत

स्वाईन फ्लू के बढ़ते मामलों के मद्देनजर सोमवार को कैबिनेट सचिव केएम चंद्रशेखर ने स्वास्थ्य मंत्रालय के उच्च अधिकारियों के साथ बैठक की। इसमें अधिकारियों ने उन्हें स्वाईन फ्लू से निपटने के इंतजाम का ब्योरा दिया। सरकारी आंकड़ों के अनुसार पिछले एक हफ्ते में स्वाईन फ्लू से 17 लोगों की मौत हुई है जबकि 345 पॉजीटिव मामले सामने आए हैं।

अधिकारियों का कहना है कि स्वाईन फ्लू से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने सभी तैयारियां पूरी कर ली हैं। इस बार सभी स्वाईन फ्लू सेंटरों में टीकों की पर्याप्त खेप भेजी जा रही है। साथ ही स्वाईन फ्लू के टीके खुले बाजार में भी उपलब्ध हैं। अधिकारियों के अनुसार बारिश के साथ ही स्वाईन फ्लू के मामलों में तेजी आ गई है। आंकड़ों के अनुसार स्वाईन फ्लू से केरल, महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश सर्वाधिक प्रभावित हैं। इसके सर्वाधिक २६६ पॉजीटिव मामले केरल से मिले हैं।

Monday, June 28, 2010

एड़मिशन ओपन


फिल्म: एड़मिशन ओपनपात्र: अनुपम खेर, आशीष विद्यार्थी, अंकुर खन्ना, प्रमोद माउथो, रति अग्निहोत्री, सुदेश बेरी, मास्टर अभिषेक शर्मानिर्देशन: के. डी. सत्यमनिर्माता: अमन फिल्म प्रोडक्शनसंगीत: अमित त्रिवेदीरेटिंग :


शिक्षा के क्षेत्र में सरकार के सुधारों को देखते हुए बॉलीवुड ने फिल्म निर्माण की पहल की है। यह भारत का दुर्भाग्य ही रहा है कि थ्री इडियट से पहले किसी फिल्म ने शिक्षा के मसले को बड़े पर्दे पर चित्रित नहीं किया। इस मामले पर एड़मिशन ओपन नाम की फिल्म ने इस मामले को उठाया है।


यह उन फिल्मों में से एक है जो कि यह बात सोचने पर विवश करती है कि आखिर निर्देशक ने यह फिल्म क्यों बनाई। इस फिल्म में पैसे के पीछे भागती शिक्षा प्रणाली पर एक करारा व्यंग्य है। फिल्म इस बात पर जोर डालती है कि हालिया शिक्षा प्रणाली में धनरहित योग्यता के लिए कोई संवेदना नहीं है।


तारिक सिद्दिकी यानि अनुपम खेर आधुनिक विचारधारा वाला एक कॉलेज खोलना चाहता है। वह चाहता है इस कॉलेज के माध्यम से परंपरागत शिक्षा पद्वति की बुराईयों पर काबू पाना चाहता है। वह मानता है कि ट्रेडिशनल एजुकेशन सिस्टम उसकी बेटे की मौत का कारण है। उसकी पत्नि राधिका (रति अग्निहोत्री) भी बेटे के गम में काल की शिकार बन जाती है। इसी बीच देवांग त्रिपाठी (आशीष विद्यार्थी) तारिक के कंधे से कंधा मिलाता है। देवांग मुम्बई यूनिवर्सिटी में शिक्षक था और उसे एल्कोहल लेने और अमूर्त तरीके से पढ़ाने के कारण यूनिवर्सिटी से निकाल दिया गया था।


इस बीच स्पिरिट नाम का कॉलेज उन सभी विद्यार्थियों को एडमिशन दे देता है जिनका किसी प्रतिष्ठित संस्थान में प्रवेश नहीं हुआ था। स्पिरिट को एनएसी से मान्यता नहीं मिलती है।


अंकुर खन्ना (अर्जुन) उन छात्रों में से एक है जो कि तारिक के सपनों को पूरा करने की लालसा रखता है पर तारिक की अचानक मौत हो जाती है। फिल्म में अब दो सवाल खड़े हो जाते हैं कि क्या कॉलेज को मान्यता मिल पाएगी और क्या विद्यर्थियों का भविष्य उज्जवल होगा।


फिल्म कई बार वास्तविकता से पर लगती है इसलिए इसे आसानी से नहीं समझा जा सकता है। फिल्म की सबसे बड़ी कमी यह है कि इसमें हंसने-हंसाने की लुफ्त नहीं मिल पाता है । साथ ही काफी लम्बे समय तक खिंचने के कारण यह थोड़ी बोझिल भी हो जाती है। फिल्म का कहानी लेखन स्तरीय है। संवाद अदायगी में हास्य का थोड़ा बहुत पुट है लेकिन यह प्रभावहीन हैं। इसका संपादन और छायांकन भी गुणवत्तापूर्ण नहीं है।


अनुपम खेर यहां हमेशा की तरह चमत्कारिक प्रदर्शन करने में सफल रहे हैं। यहां तारिक की मौत से दर्शक असमंजस की स्थिति में रहते हैं। आशीष विद्यार्थी अपनी भूमिका से न्याय करने में सफल रहे हैं। विद्यार्थी के रूप में अंकुर खन्ना और मास्टर अभिषेक शर्मा का अभिनय भी ज्यादा प्रभावी नहीं रहा है। कुल मिलाकर एड़मिशन ओपन को देखने के लिए सिफारिश नहीं की जा सकती


काइट्स (प्रेम की डोर से बंधी काइट्स)


Kites review: प्रेम की डोर से बंधी काइट्स
रेटिंग -
फिल्म समीक्षा : काइट्स
निर्देशक : अनुराग बसु
निर्माता: राकेश रोशन
कलाकार : रितिक रोशन, बारबरा मोरी, कंगना रणावत
संगीत : राजेश रोशन
गीत : नसीर फराज, आसिफ अली बेग
संपादन : अविक अली
वितरण : रिलायंस बिग पिक्चर
प्रेम को किसी भाषा की जरूरत नहीं होती, काइट्स की थीम यही है। निर्देशक अनुराग बसु ने अपनी बाकी फिल्मों की तरह इसमें भी अपने खास अंदाज को बरकरार रखा है। अपराध की गलियों में खिलती खूबसूरत रोमानी प्रेमकथा। फिल्म में हॉलीवुड फिल्मोंे की तरह की गति है। कई सीन निर्देशक की अद्भुत कल्पनाशीलता की बानगी हैं, विशेषकर जहां अशाब्दिक रोमांस का जादू बिखेरा गया है। कार रेसिंग और स्टंट को बेहतरीन तरीके से फिल्माया गया है।



पटकथा पर अनुराग बसु की मेहतन पूरी तरह से झलकती है। किस्सागोई का उनका अलग अंदाज पूरी फिल्म पर हावी रहता है। घटनाओं को फ्लैशबैक और वर्तमान को जोड़कर कुछ इस तरह से बुना गया है कि हर सीन थोड़ा चौकाता है। अविक अली का संपादन उच्चकोटि का है, बारबरा और रितिक का अभिनय फिल्म की जान है।
फिल्म जे (रितिक रोशन) और नताशा / लिंडा (बारबरा मोरी) की प्रेम की कहानी कहती है। जे (रितिक रोशन) एक डांस टीचर है। वह बहुत जल्दी अमीर होना चाहता है। इसके लिए वह ग्रीनकार्ड चाहने वाली लड़कियों से विवाह कर उन्हें अमेरिका में बसने में मदद करता है। मैक्सिको से आई लिंडा (बारबरा मोरी) भी उसकी मदद लेती है। इसी बीच जे से डांस सीख रही जीना (कंगना)को उससे प्यार हो जाता है। जीना लास वेगास के कैसिनो मालिक (कबीर बेदी) की बेटी है। उसकी दौलत के चक्ककर में जे उससे विवाह करने के लिए तैयार हो जाता है। शादी होने से पहले जे की मुलाकात नताशा उर्फ लिंडा से जीना के घर पर फिर से होती है जो कबीर बेदी के बेटे टोनी(निक ब्राउन) से विवाह करने वाली है।
जे की तरह नताशा भी केवल पैसे के लिए इस शादी को करना चाहती है। लेकिन इसी बीच जे और नताशा को अहसास होता है कि वे दोनों एक दूसरे से प्यार करते हैं। यहां से कहानी में बदलाव आता है, नताशा विवाह से एक दिन पहले जे के साथ भाग जाती है। टोनी और उसके पिता दोनों से बदला लेने के लिए पीछे पड़ जाते हैं। फिल्म में जबर्दस्त थ्रिल, स्टंट और इमोशनल सीन्स हैं। जे और नताशा की भाषा भिन्न होने के बावजूद दोनों की कैमिस्ट्री जोरदार है। हालांकि फिल्म का अंत दुखांत है।
बेहतरीन अभिनय, खूबसूरत गीत और एक अदद डांस नंबर के बावजूद फिल्म भारतीय दर्शकों को प्रभावित कर पाएगी, कहना मुश्किल है। फिल्म के पहले भाग में अमेरिका की खूबसूरत लोकेशंस दिखाई गई हैं। बैकग्राउंड म्यूजिक और सिनेमेटोग्राफी शानदार है। गीत-संगीत मधुर है। नसीर और आसिफ के लिखे गीतों को राजेश रोशन ने अपने बेहतरीन संगीत से नई ऊंचाई पर पहुंचाया है। कुल मिलाकर प्रस्तुतिकरण के मामले में अनुराग की यह फिल्म इस साल की सभी फिल्मों पर भारी पड़ती दिख रही है। क्यों देखें: रितिक के अभिनय के लिए, नए तरह के स्टोरी टेलिंग के लिए, कर्णप्रिय संगीत के लिए और बेहतरीन सिनेमेटोग्राफी के लिए।

प्रिंस ऑफ पर्सिया


डायरेक्टर: माइक निवेल


कास्ट: जेक गेलेनहाल, बेन किंग्सले, जेमा आर्टेटन, अल्फ्रेड मोलीना


बैनर : वॉल्ट डिजनी


अवधि : एक घंटा 34 मिनट


‘प्रिंस ऑफ पर्सिया : द सैंड्स टाइम’ एक्शन और एडवेंचर से भरपूर फिल्म है। फिल्म निर्देशक माइक निवेल ने इसे बनाते समय वीडियो गेम की चर्चित संसार को आधार बनाकर इसका फिल्मांकन किया है।


फिल्म आप को एक ऐसे संसार में ले जाती है जहां दो देशों का आपसी संघर्ष और समय को काबू में करने की होड़ दिखाई देती है। फिल्म के पात्रों में आपको एक तरफ बहादुर प्रिंस दास्तान (जेक गेलेनहाल) देखने को मिलता है जो जन्म से प्रिंस तो नहीं है लेकिन पर्सिया के राजा द्वारा गोद लिए जाने के कारण उसका बचपन राजकुमारों की तरह बीता है। पर्सिया के महाराजा की हत्या का आरोप भी दास्तान के ऊपर लगता है और राजा के दोनों बेटे उसके विरोधी हो जाते हैं।
दरअसल पर्सिया के राजा का असली हत्यारा राजा का खास माना जाने वाला व्यक्ति (बेन किंग्सले ) ही रहता है। उसकी इस साजिश का पर्दाफाश प्रिंस दास्तान करता है और वह उसे तानाशाह बनने से भी रोकता है ।
फिल्म एक ऐसी सैंड वॉच है जो समय को पीछे छोड़ने में सक्षम है लेकिन अगर इसके टूटने पर सारी रेत दैत्य और दानव में तब्दील हो जाती है और ये शैतान पूरे राज्य में फैलकर तबाही लाते हैं। लेकिन दूसरे देश की राजकुमारी तामीना (जेमा आर्टेटन) यहां दास्तान की मदद करती है और वे संसार को बचाने में कामयाब होते हैं। यह फिल्म बच्चों को तो बेहद पसंद आएगी, वहीं युवा वर्ग भी इसे टाइम पास फिल्म के रूप में देख सकता है।


राजनीति


निर्देशक : प्रकाश झा
सह निर्माता : रॉनी स्क्रूवाला
कलाकार : नाना पाटेकर,अजय देवगन, मनोज वाजपेयी, रणवीर कपूर ,नसीरुद्दीन शाह, कैटरीना कैफ,
अर्जुन रामपाल, सारह थॉमसन केन
पटकथा : अंजुम रजबअली,प्रकाश झा
संगीत : प्रीतम, शांतनु मोइत्रा, वेन शार्प
गीतकार : गुलजार, स्वानंद किरकिरे,
अवधि : 185 मिनट
बैनर : प्रकाश झा प्रोडक्शन , वॉक वॉटर मीडिया, यूटीवी मोशन पिक्चर
रेटिंग - 3.5/5
फिल्मकार प्रकाश झा के निर्देशन में बनी फिल्म राजनीति, सत्ता के संघर्ष में उलझे एक परिवार की कहानी है। फिल्म में छल, धोखा, संघर्ष और रक्तपात के साथ सत्ता का महाभारत दिखाने का प्रयास किया गया है। फिल्म की शुरुआत बेहद शानदार है लेकिन अंत उतना प्रभावी नहीं है। कई बार तो ऐसा लगता है कि प्रकाश झा की मौलिक सोच पर बॉक्स ऑफिस का गणित हावी हो गया है और एक बेहतरीन फिल्म बीच रास्ते में अपने वास्तविक पथ से डगमगा गई है। हालांकि संवाद बेहद प्रभावी हैं, पटकथा में एक खास किस्म का धाराप्रवाह देखने को मिलता है और कलाकारों का शानदार अभिनय फिल्म की जान है।
फिल्म की शुरुआत वामपंथी नेता भास्कर सान्याल (नसीरुद्दीन शाह) के प्रभावी अंदाज से होती है। उसके इस अंदाज पर विपक्षी दल की नेता की बेटी भारती (निखिला त्रिखा) भी वामपंथ की धारा में शामिल हो जाती है। भास्कर और भारती में एक दिन संबंध बन जाते हैं, भास्कर इसे अपनी बड़ी भूल मानता है और वनवास पर निकल जाता है। भारती एक बेटे को जन्म देती है लेकिन उसका भाई ब्रज गोपाल (नाना पाटेकर) उसे मंदिर में छोड़ आता है। इस बीच भारती का विवाह जबरन एक राजनैतिक परिवार में कर दी जाती है। लेकिन इस परिवार में सत्ता का संघर्ष उस समय शुरु हो जाता है जब परिवार के मुखिया को लकवा मार जाता है और राष्ट्रवादी पार्टी की बागडोर भारती के पति को मिल जाती है लेकिन इस बात को उसका देवर वीरेंद्र प्रताप (मनोज वाजपेयी) पसंद नहीं करता है।
यहीं से राजनीति छल कपट का एक दौर शुरु होता है जिसमें एक तरफ वीरेंद्र और उसका दोस्त सूरज (अजय देवगन) होते है तो दूसरी तरफ भारती के पति और उसके दो बेटे पृथ्वी (अर्जुन रामपाल) और समर प्रताप (रणबीर कपूर) के बीच राजनीतिक शह और मात का खेल शुरु होता है। फिल्म में समर प्रताप (रणबीर कपूर) से (इंदू) कैटरीना एक तरफा प्यार करती है लेकिन उसका विवाह बाद में उसके भाई पृथ्वी(अर्जुन रामपाल)के साथ होता है। चुनावी मौसम में शह और मात के बीच वोटों की शतरंजी बिसात पर रक्तपात के साथ फिल्म को रोंमाचक बनाने का प्रयास किया गया है। फिल्म में कैटरीना ने छोटे लेकिन प्रभावी रोल में शानदार अभिनय किया है।
ऐसा लगता है हर पात्र एक दूसरे को अपने लिए उपयोग करना चाहता है, लेकिन सूरज के माध्यम से एक ऐसा पात्र भी फिल्म में है जो राजनीति के इस मकड़जाल में भी दोस्ती को निभाता है।
फिल्म में गीतों की संख्या कम है, लेकिन गीतों में मधुरता है। राजनेताओं पर बनीं इस फिल्म में भीड़ का जो आकार निर्देशक ने दिखाया है वह कमाल का है। बेहतरीन संवादों के बीच भीड़ की नारेबाजी के बीच लोकतंत्र को भीड़तत्र में बदलते हुए दिखाने का प्रयास शानदार है। लेकिन एक नेता का खुद हथियार उठा लेना और कत्ल की वारदात करते हुए दिखाना कुछ अतिरंजना सी बात दिखती है।
फिल्म का अंतिम एक घंटा उतना प्रभावी नहीं बन सका है और यहीं से निर्देशक के हाथ से फिल्म छूटती दिखती है। फिल्म में जिस तरह से बोल्ड सीन का फिल्मांकन किया गया है वह भी चौकानें वाला पहलू है। फिल्म की शूटिंग झीलों के खूबसूरत शहर भोपाल में हुई है और फिल्म का छायाकंन शानदार रहा है।
भले ही यह फिल्म प्रकाश झा की पूर्व फिल्मों की तुलना में उतनी प्रभावी नहीं हो लेकिन अजय देवगन, रणबीर कपूर , मनोज वाजपेयी और अर्जुन रामपाल के बेहतरीन अभिनय और राजनीतिक शह - मात के रोचक अंदाज को देखने के लिए इस फिल्म को देखा जा सकता है।

एक सेकेण्ड... जो जिंदगी बदल दे

एक सेकेण्ड जो जिंदगी बदल दे
प्रोड्यूसर:रचना सुनील सिंह
डायरेक्टर:पार्थो घोष
स्टार कास्ट:मनीषा कोइराला,जैकी श्रॉफ,निकिता आनंद,सुनील सिंह, रोज़ा केटालानो
स्टार रेटिंग:1

कहते हैं कि अगर हम ठान लें तो अपनी तकदीर खुद बदल सकते हैं|सिर्फ लड़ने का हौंसला और लगन होनी चाहिए|एक सेकेण्ड..जो जिंदगी बदल दे में फिल्म का भी यही कांसेप्ट है|फिल्म का कांसेप्ट तो नया है मगर इस फिल्म में ऐसा कुछ नहीं जो दर्शकों को अपनी और आकर्षित कर सके|एक सेकेण्ड के डायरेक्टर हैं पार्थो घोष जो लम्बे समय से बॉलीवुड में फिल्में बनाते आ रहे मगर अभी भी इस बात को समझ नहीं पाए कि अच्छी फिल्म कैसेबनाई जाती है|
फिल्म की स्टोरी लाइन तो अच्छी है मगर यह दर्शकों के दिल को छू पाने में नाकामयाब नज़र आती है|फिल्म का स्क्रीन प्ले और एडिटिंग पक्ष बेहद कमज़ोर है और फिल्म के कलाकार इसे और कमज़ोर बनाते हैं|सिर्फ मनीषा कोइराला की ऐक्टिंग ही इस फिल्म में थोड़ी जान ला पाती है|इस फिल्म में यह बताने की कोशिश की गई है कि एक सेकंड में आपकी जिंदगी बदल सकती है|फिल्म की कहानी घूमती है राशी(मनीषा कोइराला) के इर्द गिर्द जो की अपनी जिंदगी में प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ में बेहद उतर चढाव भरे दौर से गुजर रही हैं|

शांतनु रॉय(मुआमर रना) राशी(मनीषा कोइराला) का बॉय फ्रेंड है|शांतनु पेशे से एक नोवालिस्ट है|राशी उससे बहुत प्यार करती है मगर शांतनु उसे धोखा देता है|उसका तमन्ना(निकिता आनंद)के साथ अफेयर है|यह बात जब राशी को पता चलती है तो उसे बहुत बुरा लगता है|वह अंदर से टूट जाती है|उसकी मुलाक़ात (युवराज)जैकी श्रॉफ से होती है|युवराज एक तलाकशुदा व्यक्ति है जिसका अपनी पत्नी रोज़ा से तलाक हो चुका है|राशी और युवराज एकदूसरे को चाहने लगते हैं और जिंदगी राशी को अपनी जिंदगी दोबारा शुरू करने का मौका देती है|

फिल्म की स्क्रिप्ट बेदम है|कहानी में कोई नयापन नहीं है|स्क्रीन प्ले और एडिटिंग में कोई जान नहीं है|फिल्म की म्यूजिक भी बिल्कुल प्रभावशाली नहीं है|साथ ही शायराना अंदाज़ में लिखे डायलॉग इसे और भी कमज़ोर बना देते हैं|फिल्म मनीषा कोइराला के कंधों पर टिकी हुई है| बाकी कलाकार बिल्कुल भी प्रभावशाली नहीं है|अगर आप मनीषा कोइराला के बहुत बड़े फैन हैं तो ही आप यह फिल्म देखने सिनेमा घर जाएं|

रावण


स्टार कास्ट:अभिषेक बच्चन,ऐश्वर्या राय बच्चन,विक्रम,गोविंदा,रवि किशन,प्रियामणि,निखिल द्विवेदी
निर्देशक: मणिरत्नम
अवधि: दो घंटे 6 मिनट
स्टार रेटिंग: 2.5
लंबे समय बाद फिल्म निर्देशक मणिरत्नम फिल्म रावण के साथ दर्शकों से रूबरू हुए हैं। फिल्म रावण की कहानी रामायण से प्रेरित जरूर है लेकिन उसे आज के संदर्भ में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। फिल्म में ऐश्वर्या रॉय का अभिनय, संतोष सिवान की बेहतरीन सिनेमेटोग्राफी और खूबसूरत लोकेशंस प्रभावित करने वाले हैं। फिल्म अच्छाई और बुराई के जिस कथानक को ध्यान में रखकर बनाई गई है उसमें वह उतनी सफल नजर नहीं आती है। अभिषेक बच्चन ने इससे पहले मणिरत्नम की ‘युवा’ और गुरु’ में जिस तरह का जादू जगाया था वैसा कुछ रावण में देखने को नहीं मिलता है।
फिल्म का कथानक लाल माटी के जंगलों में रहने वाले बीरा (अभिषेक बच्चन) पुलिस अधिकारी देव प्रताप (विक्रम)और रागिनी (ऐश्वर्या रॉय) की जिंदगी के आस -पास घूमता है। लाल माटी के जंगलों में रहने वाले लोगों के लिए वीरा कुछ कुछ रॉबिन हुड की तरह है, वह कुछ लोगों के लिए काल है तो कुछ लोगों के लिए वह बहुत प्यारा है। लेकिन देवप्रताप उसे हर हाल में पकड़ना चाहता है क्योंकि बीरा के कब्जे में उसकी पत्नी रागिनी है। बीरा-रागिनी का अपहरण पुलिस अधिकारी देवप्रताप से बदला लेने के लिए करता है। देवप्रताप -बीरा को पकड़ने के लिए वह सब कुछ करता है जो उसके बस में होता है और बीरा अपने अंदाज में हर बात का जवाब देता है ।
फिल्म की शुरुआत के 4 मिनट बेहद प्रभावशली है। ऐश्वर्या का अभिनय और उनकी खूबसूरती पूरी फिल्म में लाजवाब अंदाज में उभर कर आती है। इन सब बातों के बावजूद मध्यांतर से पहले फिल्म प्रभावित नहीं करती है। फिल्म की पटकथा में असली रोमांच दूसरे भाग में आता है और कहानी में बदलाव दर्शक को बांधे रखता है। लेकिन फिल्म में जिस तरह से रावण का अंत दिखाया गया है वह एक सवाल छोड़ जाता है , क्या बीरा सचमुच बुरा था? आप इसे यूं भी कह सकतें है क्या रावण सचमुच बुरा था? ऐसा लगता है यहीं वह प्रश्न है जिसके चलते मणिरत्नम ने इस फिल्म को कुछ बदलावों के साथ दर्शक को बताने का प्रयास किया है।
फिल्म का संगीत ठीक-ठाक है, गीतों के बोल में गुलजार का ºास अंदाज झलकता है। इन सब बातों के बावजूद ऐसा लगता है कि फिल्म वह जादू नहीं जगा पाई जिसकी उम्मीद मणिरत्नम की फिल्मों से की जाती है।
फिल्म के अन्य कलाकारों में रवि किशन ने अपने रोल के साथ न्याय किया है, प्रियामणि अपने छोटे से रोल में प्रभावी और बेहद खूबसूरत नजर आई हैं। गोविंदा ने आखिर यह फिल्म क्यों की कुछ समझ नहीं आता, उनके लिए फिल्म में करने के लिए कुछ था ही नहीं।इस फिल्म को ऐश्वर्या रॉय के खूबसूरत और दिलकश अभिनय, और संतोष सिवन की बेहतरीन सिनेमैटोग्राफी के लिए देखा जा सकता है।

मिसेज़ सिंह और मिस्टर मेहता


फिल्म:मिसेज सिंह और मिस्टर मेहताकास्ट:प्रशांत नारायणन,अरुणा शील्ड्स,नावेद असलम और लूसी हसन


डायरेक्शन:प्रवेश भारद्वाज


संगीत: उस्ताद शुजात हुसैन


समय अवधि:2 घंटे


स्टार रेटिंग:1
मिसेज़ सिंह और मिस्टर मेहता फिल्म के डायरेक्टर प्रवेश भारद्वाज से यह पूछा जाना चाहिए कि उन्होंने यह फिल्म क्यों बनाई। विवाहेत्तर संबंधों(एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर)पर पहले भी सिलसिला,कभी अलविदा न कहना और मर्डर जैसी फिल्मों में कई बार दिखाया जाचुका है इसलिए फिल्म में ऐसा कुछ भी दर्शकों को आकर्षित कर सके।



फिल्म की कहानी विवाहेत्तर संबंधों(एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर)पर आधारित है। कहानी है दो शादीशुदा जोड़ों की (नीरा)अरुणा शील्ड्स की शादी (करन)नावेद असलम से हुई है और (अश्विन)प्रशांत नारायणन की शादी (सखी)लूसी हसन से हुई है। दोनों ही जोड़े अपने पार्टनर्स को धोखा देते हैं। करन (नीरा के पति) के (सखी)प्रशांत की पत्नी के साथ संबंध हैं।



यह बात नीरा को पता चल जाती है कि उसका पति उसके पीछे क्या गुल खिला रहा है। नीरा इस बात से काफी दुखी हो जाती है और सारी बात अश्विन को बता देती है|अश्विन नीरा को सहारा देता है और धीरे दोनों एक दूसरे के करीब आने लगते हैं। फिल्म के अंत तक पहुंचने पर भी यह समझ नहीं आता कि आखिर डायरेक्टर फिल्म के माध्यम से कहना क्या चाहता था।



फिल्म की बेजान पठकथा इसे बेहद बोरिंग बना देती है। साथ ही अश्विन और नीरा ऊपर फिल्माए गए न्यूड और सेक्स सींस बार बार बेवजह रिपीट किए गए हैं। बेजान स्टोरी,बेदम स्क्रीनप्ले और नीरस डायलॉग्स फिल्म को और भी ज्यादा कमज़ोर बना देते हैं। ग़ज़लों की वजह से फिल्म का संगीत मधुर लगता है|



कलाकारों की अदाकारी की बात की जाए तो सिर्फ प्रशांत नारायणन ही फिल्म में छाप छोड़ने में कामयाब नज़र आते हैं|प्रशांत की डायलॉग डिलेवरी और एक्सप्रेशंस कमाल के हैं। अरुणा शील्ड्स ने ओवर एक्टिंग की है|नावेद असलम और लूसी हसन ने अपने छोटे से रोल में ठीक ठाक अभिनय किया है।



साफ़ तौर पर कहा जाए तो फिल्म बिलकुल बेदम है और अगर कोई देखना चाहे तो अरुणा के न्यूड सींस और प्रशांत नारायणन की बढ़िया परफोर्मेंस की वजह से फिल्म देख सकता है।


क्रान्तिवीर ( हिंदी फिल्म )

स्टार कास्ट- समीर अफताब, आदित्य सिंह राजपूत, हर्ष राजपूत, जहाँ ब्लोच, रंजीत, फरीदा जलाल, गोविंद नामदेव, मुकेश तिवारी, अमन वर्मा हितेन पेंटल ।

निर्देशक-मेहुल कुमार

म्यूजिक-सचिन-जिगर

निर्माता- व्हाइट सिटी इंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड

रेटिंग--

1994 में आई नाना पाटेकर और डिम्पल कपाड़िया की सुपरहिट फिल्म क्रांतिवीर का सीक्वल दर्शकों के सामने आ रहा है। जिसका नाम क्रांतिवीर-द रिवोल्यूशन है। फिल्म की कहानी रोशनी (जहां ब्लोच) के इर्द-गिर्द घूमती है। जहाना प्रताप नारायण तिलक (नाना पाटेकर) और कलमवाली बाई (डिम्पल कपाड़िया) की बेटी है।

रोशनी बिल्कुल अपने पिता की तरह मजबूत इरादों वाली लड़की है जो एक अच्छी नौकरी पाने के लिए संघर्ष कर रही है। वह अपनी मां की पदचिन्हों पर चल कर मीडिया के क्षेत्र में कदम रखती है। जहां उसकी दोस्ती विशाल(समीरअफताब), गोल्डी(आदित्य सिंह राजपूत) और उदय (हर्ष राजपूत) से हुई और अपने इन्ही दोस्तों के साथ वह पूरी फिल्म में भ्रष्ट सिस्टम को लेकर लड़ती रहती है।

इंटरवल से पहले फिल्म में रोशनी बिल्कुल वैसे ही घरेलू हिंसा से पीड़िता लोगों को प्रेरित करती हुई नजर आती जैसे पहले आई क्रांतीवीर फिल्म में नाना पाटेकर ने किया था। इस फिल्म रोशनी द्वारा बोले गए कुछ ऐसे डायलॉग भी सुनने में आए हैं जो पहली वाली क्रांतिवीर में नाना पाटेकर द्वारा बोले गए थे। फिल्म के यही कुछ हिस्से इन दोनों फिल्मों को आपस में जोड़ते हैं।

वहीं इंटरवल के बाद रोशनी जिस तरह निडर होकर मंत्री के घर में प्रवेश करती हैं और जासूसी करती हैं उससे उनके चरित्र में और दृढ़ता आ जाती है। बात अगर फिल्म जहां की परफॉर्मेस का की जाए तो उनकी अदाकारी उनके को-स्टार्स पर काफी भारी पड़ी है।

फिल्म में प्रेम त्रिकोण भी दिखाया गया है और फिल्म के गानों की शूटिंग विदेशों में की गई है। जो फिल्म में रोचकता के साथ रस भी भरते हैं। फिर भी फिल्म कमजोर स्क्रिप्ट होने के कारण दृश्यों को उभार पाने में असमर्थ है। देखा जाए तो फिल्म में नएपन का अभाव है। ब्लॉकबस्टर फिल्म क्रांतिवीर से फिल्म की तुलना करने पर यह कहना गलत न होगी की उस फिल्म की तुलना में यह काफी फीकी है।