Monday, June 28, 2010

राजनीति


निर्देशक : प्रकाश झा
सह निर्माता : रॉनी स्क्रूवाला
कलाकार : नाना पाटेकर,अजय देवगन, मनोज वाजपेयी, रणवीर कपूर ,नसीरुद्दीन शाह, कैटरीना कैफ,
अर्जुन रामपाल, सारह थॉमसन केन
पटकथा : अंजुम रजबअली,प्रकाश झा
संगीत : प्रीतम, शांतनु मोइत्रा, वेन शार्प
गीतकार : गुलजार, स्वानंद किरकिरे,
अवधि : 185 मिनट
बैनर : प्रकाश झा प्रोडक्शन , वॉक वॉटर मीडिया, यूटीवी मोशन पिक्चर
रेटिंग - 3.5/5
फिल्मकार प्रकाश झा के निर्देशन में बनी फिल्म राजनीति, सत्ता के संघर्ष में उलझे एक परिवार की कहानी है। फिल्म में छल, धोखा, संघर्ष और रक्तपात के साथ सत्ता का महाभारत दिखाने का प्रयास किया गया है। फिल्म की शुरुआत बेहद शानदार है लेकिन अंत उतना प्रभावी नहीं है। कई बार तो ऐसा लगता है कि प्रकाश झा की मौलिक सोच पर बॉक्स ऑफिस का गणित हावी हो गया है और एक बेहतरीन फिल्म बीच रास्ते में अपने वास्तविक पथ से डगमगा गई है। हालांकि संवाद बेहद प्रभावी हैं, पटकथा में एक खास किस्म का धाराप्रवाह देखने को मिलता है और कलाकारों का शानदार अभिनय फिल्म की जान है।
फिल्म की शुरुआत वामपंथी नेता भास्कर सान्याल (नसीरुद्दीन शाह) के प्रभावी अंदाज से होती है। उसके इस अंदाज पर विपक्षी दल की नेता की बेटी भारती (निखिला त्रिखा) भी वामपंथ की धारा में शामिल हो जाती है। भास्कर और भारती में एक दिन संबंध बन जाते हैं, भास्कर इसे अपनी बड़ी भूल मानता है और वनवास पर निकल जाता है। भारती एक बेटे को जन्म देती है लेकिन उसका भाई ब्रज गोपाल (नाना पाटेकर) उसे मंदिर में छोड़ आता है। इस बीच भारती का विवाह जबरन एक राजनैतिक परिवार में कर दी जाती है। लेकिन इस परिवार में सत्ता का संघर्ष उस समय शुरु हो जाता है जब परिवार के मुखिया को लकवा मार जाता है और राष्ट्रवादी पार्टी की बागडोर भारती के पति को मिल जाती है लेकिन इस बात को उसका देवर वीरेंद्र प्रताप (मनोज वाजपेयी) पसंद नहीं करता है।
यहीं से राजनीति छल कपट का एक दौर शुरु होता है जिसमें एक तरफ वीरेंद्र और उसका दोस्त सूरज (अजय देवगन) होते है तो दूसरी तरफ भारती के पति और उसके दो बेटे पृथ्वी (अर्जुन रामपाल) और समर प्रताप (रणबीर कपूर) के बीच राजनीतिक शह और मात का खेल शुरु होता है। फिल्म में समर प्रताप (रणबीर कपूर) से (इंदू) कैटरीना एक तरफा प्यार करती है लेकिन उसका विवाह बाद में उसके भाई पृथ्वी(अर्जुन रामपाल)के साथ होता है। चुनावी मौसम में शह और मात के बीच वोटों की शतरंजी बिसात पर रक्तपात के साथ फिल्म को रोंमाचक बनाने का प्रयास किया गया है। फिल्म में कैटरीना ने छोटे लेकिन प्रभावी रोल में शानदार अभिनय किया है।
ऐसा लगता है हर पात्र एक दूसरे को अपने लिए उपयोग करना चाहता है, लेकिन सूरज के माध्यम से एक ऐसा पात्र भी फिल्म में है जो राजनीति के इस मकड़जाल में भी दोस्ती को निभाता है।
फिल्म में गीतों की संख्या कम है, लेकिन गीतों में मधुरता है। राजनेताओं पर बनीं इस फिल्म में भीड़ का जो आकार निर्देशक ने दिखाया है वह कमाल का है। बेहतरीन संवादों के बीच भीड़ की नारेबाजी के बीच लोकतंत्र को भीड़तत्र में बदलते हुए दिखाने का प्रयास शानदार है। लेकिन एक नेता का खुद हथियार उठा लेना और कत्ल की वारदात करते हुए दिखाना कुछ अतिरंजना सी बात दिखती है।
फिल्म का अंतिम एक घंटा उतना प्रभावी नहीं बन सका है और यहीं से निर्देशक के हाथ से फिल्म छूटती दिखती है। फिल्म में जिस तरह से बोल्ड सीन का फिल्मांकन किया गया है वह भी चौकानें वाला पहलू है। फिल्म की शूटिंग झीलों के खूबसूरत शहर भोपाल में हुई है और फिल्म का छायाकंन शानदार रहा है।
भले ही यह फिल्म प्रकाश झा की पूर्व फिल्मों की तुलना में उतनी प्रभावी नहीं हो लेकिन अजय देवगन, रणबीर कपूर , मनोज वाजपेयी और अर्जुन रामपाल के बेहतरीन अभिनय और राजनीतिक शह - मात के रोचक अंदाज को देखने के लिए इस फिल्म को देखा जा सकता है।

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