Monday, June 28, 2010

एड़मिशन ओपन


फिल्म: एड़मिशन ओपनपात्र: अनुपम खेर, आशीष विद्यार्थी, अंकुर खन्ना, प्रमोद माउथो, रति अग्निहोत्री, सुदेश बेरी, मास्टर अभिषेक शर्मानिर्देशन: के. डी. सत्यमनिर्माता: अमन फिल्म प्रोडक्शनसंगीत: अमित त्रिवेदीरेटिंग :


शिक्षा के क्षेत्र में सरकार के सुधारों को देखते हुए बॉलीवुड ने फिल्म निर्माण की पहल की है। यह भारत का दुर्भाग्य ही रहा है कि थ्री इडियट से पहले किसी फिल्म ने शिक्षा के मसले को बड़े पर्दे पर चित्रित नहीं किया। इस मामले पर एड़मिशन ओपन नाम की फिल्म ने इस मामले को उठाया है।


यह उन फिल्मों में से एक है जो कि यह बात सोचने पर विवश करती है कि आखिर निर्देशक ने यह फिल्म क्यों बनाई। इस फिल्म में पैसे के पीछे भागती शिक्षा प्रणाली पर एक करारा व्यंग्य है। फिल्म इस बात पर जोर डालती है कि हालिया शिक्षा प्रणाली में धनरहित योग्यता के लिए कोई संवेदना नहीं है।


तारिक सिद्दिकी यानि अनुपम खेर आधुनिक विचारधारा वाला एक कॉलेज खोलना चाहता है। वह चाहता है इस कॉलेज के माध्यम से परंपरागत शिक्षा पद्वति की बुराईयों पर काबू पाना चाहता है। वह मानता है कि ट्रेडिशनल एजुकेशन सिस्टम उसकी बेटे की मौत का कारण है। उसकी पत्नि राधिका (रति अग्निहोत्री) भी बेटे के गम में काल की शिकार बन जाती है। इसी बीच देवांग त्रिपाठी (आशीष विद्यार्थी) तारिक के कंधे से कंधा मिलाता है। देवांग मुम्बई यूनिवर्सिटी में शिक्षक था और उसे एल्कोहल लेने और अमूर्त तरीके से पढ़ाने के कारण यूनिवर्सिटी से निकाल दिया गया था।


इस बीच स्पिरिट नाम का कॉलेज उन सभी विद्यार्थियों को एडमिशन दे देता है जिनका किसी प्रतिष्ठित संस्थान में प्रवेश नहीं हुआ था। स्पिरिट को एनएसी से मान्यता नहीं मिलती है।


अंकुर खन्ना (अर्जुन) उन छात्रों में से एक है जो कि तारिक के सपनों को पूरा करने की लालसा रखता है पर तारिक की अचानक मौत हो जाती है। फिल्म में अब दो सवाल खड़े हो जाते हैं कि क्या कॉलेज को मान्यता मिल पाएगी और क्या विद्यर्थियों का भविष्य उज्जवल होगा।


फिल्म कई बार वास्तविकता से पर लगती है इसलिए इसे आसानी से नहीं समझा जा सकता है। फिल्म की सबसे बड़ी कमी यह है कि इसमें हंसने-हंसाने की लुफ्त नहीं मिल पाता है । साथ ही काफी लम्बे समय तक खिंचने के कारण यह थोड़ी बोझिल भी हो जाती है। फिल्म का कहानी लेखन स्तरीय है। संवाद अदायगी में हास्य का थोड़ा बहुत पुट है लेकिन यह प्रभावहीन हैं। इसका संपादन और छायांकन भी गुणवत्तापूर्ण नहीं है।


अनुपम खेर यहां हमेशा की तरह चमत्कारिक प्रदर्शन करने में सफल रहे हैं। यहां तारिक की मौत से दर्शक असमंजस की स्थिति में रहते हैं। आशीष विद्यार्थी अपनी भूमिका से न्याय करने में सफल रहे हैं। विद्यार्थी के रूप में अंकुर खन्ना और मास्टर अभिषेक शर्मा का अभिनय भी ज्यादा प्रभावी नहीं रहा है। कुल मिलाकर एड़मिशन ओपन को देखने के लिए सिफारिश नहीं की जा सकती


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