Monday, July 12, 2010

फिल्म समीक्षाः 'मिलेंगे मिलेंगे'

कास्ट : शाहिद कपूर, करीना कपूर, सतीश कौशिक, सतीश शाह, दिलनाज़ पॉल, आरती छाबरिया
निर्देशक : सतीश कौशिक
निर्माता : एस.के. फिल्म इंटरप्राइजेस, बोनी कपूर
संगीत : हिमेश रेशमिया
लेखक : शिराज अहमद
स्टार्स:1.5
शाहिद कपूर और करीना कपूर की फिल्म 'मिलेंगे मिलेंगे' हॉलीवुड फिल्म सेरेनडिपिटी का कमज़ोर रूपांतरण है| फिल्म की कहानी घूमती है ऐसे दो लोगों के इर्द-गिर्द जिन्हें किस्मत मिलाने के लिए खेल खेलती है|
फिल्म में करीना ने निभाया है प्रिया मल्होत्रा का किरदार जो कि किस्मत में बहुत विश्वास करती हैं और एक टैरो कार्ड रीडर किरण खेर के कहने पर अपने प्यार को ढूंढने बेंकॉक चली जाती है|जहां प्रिया की मुलाक़ात होती है इम्मी(शाहिद कपूर)से|
इम्मी(शाहिद कपूर) को इंप्रेस करने की कोशिश करता है और उससे झूठ बोलकर उसे यह जताने की कोशिश करता है कि वही प्रिया का मिस्टर राइट है जिसकी तलाश में वह बेंकॉक आई है|
प्रिया भी इम्मी की बातों में आकर उससे प्यार कर बैठती है|मगर जब उसे इम्मी की सच्चाई पता चलती है तो उसे बहुत दुःख पहुंचता है मगर वह तब भी इम्मी को दूसरा मौका देती है कि वह साबित करे कि वही वह इंसान है जिसकी उसे तलाश है|
बाद में प्रिया को इम्मी यही साबित करने की कोशिश में लगा रहता है और वही ट्रिक्स अपनाताहै जो हॉलीवुड फिल्म सेरेनडिपिटी में हीरो हीरोइन को इंप्रेस करने के लिए अपनाता है|फिल्म का पहले हिस्सा कोई खास प्रभावशाली नहीं है|
करीना केवल किस्मत की बातें ही करती रहती हैं वहीँ इम्मी सिवाए स्मोकिंग पर लेक्चर देने के अलावा कोई और काम नहीं करता|फिल्म के ज्यादातर हिस्सों में शाहिद को बेवजह सिगरेट पिटे हुए दिखाया गया है जिन्हें फिल्म में रखने की कोई जरुरत नहीं थी|
पहले हिस्से में सिर्फ शाहिद का लड़की बनना ही फिल्म में थोड़ा मज़ा ला पता है क्योंकि उस द्रश्य में वह काफी क्यूट लग रहे हैं मगर फिल्म के ख़राब ट्रीटमेंट की वजह से यह द्रश्य भी छाप नहीं छोड़ पाता|
फिल्म का दूसरा हिस्सा शरू होता है तीन साल के लीप के बाद जहां प्रिया और इम्मी को अपने-अपने मंगेतर के साथ मिलते हुए दिखाया जाता है|अलग अलग सगाई होने के बाद भी दोनों एक दूसरे से मिलना नहीं छोड़ पाते जिससे यह साफ़ हो जाता है कि दोनों एक दूसरे को अब भी भुला नहीं पाए हैं| आरती छाबरिया ने शाहिद कपूर की मंगेतर का किरदार निभाया है|
फिल्म में सब कुछ पहले से ही साफ़ होता है|ऐसा कुछ नहीं है जो दर्शकों की जिज्ञासा को बनाए रख सके|दर्शक आसानी से भांप जाते हैं कि अगले सीन में क्या होने वाला है|सतीश शाह और किरण खेर जैसे मंझे हुए कलाकारों ने यह फिल्म क्यों की किसी को समझ नहीं आता|सतीश कौशिक को भी इस फिल्म से ज्यादा कुछ हासिल नहीं होने वाला है|
शाहिद को फिल्म कमीने और ओमकारा में करीना की जबरदस्त एक्टिंग देखने के बाद इस फिल्म में उनकी एक्टिंग बचकानी लगती है|फिल्म काफी आउटडेटेड लगती है|फिल्म के कुछ हिस्सों में डायलॉग्स बहुत ज्यादा फ़िल्मी लगते हैं जो की दर्शक शायद ही पचा पाएं|
शाहिद-करीना के फैंस के लिए यह फिल्म दोनों को ऑन स्क्रीन देखने का आखरी मौका है| फिल्म में उनके रोमांटिक सींस काफी रियल लगते हैं और डायरेक्टर ने भी कभी रियल लाइफ कपल रह चुके इस जोड़े का रोमांटिक द्रश्यों को फिल्माने में खूब फायदा उठाया है|
इन दोनों पर फिल्माए गए दो गाने 'कुछ तो बाकी है' और 'मिलेंगे मिलेंगे' इन दोनों पर काफी अच्छी तरह से फिल्माए गए हैं|नहीं तो फिल्म में प्रिया और इम्मी बने शाहिद-करीना जब वी मेट के गीत और आदित्य के आस पास भी नज़र नहीं आते|

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