दुनिया भर के मजदूरों के लिए एक मई का दिन खास मायने रखता है। क्योंकि, इस एक दिन ही सही पर वैश्विक मंच पर एक सुर में कम से कम उनके अधिकारों, हितों और जिंदगी की बात तो की जाती है। विश्व के कई देशों में 1 मई को अंतरराष्ट्रीय श्रम दिवस के रूप में मनाया जाता है और इस दिन सार्वजनिक अवकाश होता है। अंतरराष्ट्रीय श्रम दिवस की शुरूआत मुख्य रूप से ब्रिटेन में आद्योगिक क्रांति के दौरान हुए "एट ऑवर डे" मूवमेंट के आधार पर हुई थी। ब्रिटेन सहित पूरी दुनिया में मजदूरों से उद्योगों में 10-16 घंटे तक काम कराया जाता था। उस दौरान मजदूरों की दशा काफी दयनीय थी और उन्हें सिर्फ काम और काम में ही झोंक कर रखा जाता था।
रॉबर्ट ओवेन ने 1810 में मजदूरों के हक में आवाज बुलंद करते हुए एक दिन में सिर्फ 10 घंटे काम कराए जाने की मांग की। बाद में 1817 में उन्होंने इसमें बदलाव करते हुए "एट ऑवर डे" यानि एक दिन में सिर्फ आठ घंटे काम कराने की बात करते हुए एक नई अवधारण को रखा। उन्होंने "एट ऑवर लेबर, एट ऑवर रिक्रिएशन और एट ऑवर रेस्ट" यानि "आठ घंटे काम, आठ घंटे मनोरंजन और आठ घंटे आराम" का नारा दिया। रॉबट ओवेन के "एट ऑवर डे मूवमेंट" का असर धीरे-धीरे पूरी दुनिया पर पड़ा
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